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Monday, November 21, 2016

एशिया का मैनचेस्टर कानपुर :
खोया भी हासिल भी

   'एशिया का मैनचेस्टर" का खिताब रखने वाला 'कानपुर" का भी अपना एक अलग एवं शानदार इतिहास रहा। कानपुर ने राजा-रजवाड़ा का अंदाज देखा तो वहीं मुगल शासकों का शासन भी जिया। गोरी सरकार (ब्रिटानिया हुकूमत) के कोड़े भी खाये। लोकतांत्रिक व्यवस्था को भी शिद्दत से महसूस किया। करीब चालीस लाख की आबादी वाले इस शहर कानपुर की स्थापना का श्रेय सामान्य तौर पर हिन्दू राजा हिन्दू सिंह को दिया जाता है। सचेण्डी राज्य के राजा हिन्दू सिंह ने कान्हपुर के नाम से इस शहर को आबाद किया था। करीब ढ़ाई सौ वर्ष के इतिहास में कानपुर ने अनेक इतिहास रचे तो अनेक इतिहास देखे। 

किवदंती यह भी है कि महाभारत काल में कानपुर बसा। वीर-योद्धा कर्ण से ताल्लुक होने के कारण इस शहर का नामकरण 'कान्हपुर" नाम से किया गया था। अवध के नवाबों का भी शासन कानपुर में रहा। यह शहर पुराना कानपुर, कुरसवां, पटकापुर, सीसामऊ व घुसरामऊ आदि गांवों की भूमि पर बसा। किवदंतियों की मानें तो आैद्योगिक राजधानी का दर्जा रखने वाले इस शहर का शासन कभी कन्नौज व कालपी के शासकों के हाथ भी रहा। बताते हैं कि वर्ष 1773 की संधि के बाद इस शहर की कमान ब्रिाटानिया हुकूमत के हाथ में चली गयी। ब्रिटानिया हुकूमत ने शासन के पांच वर्ष बाद 1778 में छावनी की स्थापना की। गंगा तट पर बसा होने के कारण जल यातायात की सुगमता थी लिहाजा शहर ने धीरे-धीरे आैद्योगिक स्वरूप लेना प्रारम्भ कर दिया। प्रारम्भ में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने कानपुर में नील बनाने का उद्योग स्थापित किया। वर्ष 1832 में ग्रांड ट्रंक रोड (जी टी रोड) बन जाने से शहर इलाहाबाद से भी जुड़ गया। 

लखनऊ, कालपी व इलाहाबाद सहित आसपास के नगरों से जुड़ने से शहर व शहर में आैद्योगिक विकास अत्यंत तेजी से हुआ। वर्ष 1857 के विद्रोह के बाद ब्रिाटानिया हुकूमत ने नहर से पश्चिम एवं जाजमऊ के पूर्व का क्षेत्र शहरी बाशिंदों व शासकीय व्यवस्थाओं के लिए अवमुक्त कर दी। शहरी विकास एवं आैद्योगिक विकास होने के साथ ही वर्ष 1859 में रेल संसाधन का विकास हुआ। रेलवे स्टेशन व रेलवे लाइन की व्यवस्थायें होने के बाद शहर के विकास ने एक बार फिर गति पकड़ी। सूती वस्त्र, चमड़ा, प्लास्टिक, इस्पात, इंजीनियरिंग आदि  आैद्योगिक विकास हुआ। इसके बाद शहर का अत्यंत तेजी से विकास हुआ। यूरोपीय व्यापारियों, प्रतिष्ठान व गोदाम आदि की रक्षा के लिए फौज की पर्याप्त व्यवस्था ब्रिाटिश हुकूमत ने की थी। छावनी क्षेत्र में फौज का विशाल शस्त्रागार व यूरोपियन हास्पिटल भी बनाया गया।

 शनै:-शनै: विस्तार ने कानपुर की सीमायें समय-समय पर परिवर्तित की लेकिन छावनी क्षेत्र में अभी भी सदर बाजार, लालकुर्ती, गोरा बाजार, कछियाना, सुुतरखाना, दानाखोरी, घसियारी मण्डी, तेलियाना, माल रोड़ का आंशिक हिस्सा है। हालात यह हैं कि अब शहरी क्षेत्र पूर्व में रूमा, पश्चिम में मंधना, दक्षिण में रमईपुर-बिनगंवा, पश्चिम-दक्षिण में भौंती-पनकी आदि इलाकों से भी कहीं आगे निकल गया है। विशेषज्ञों की मानें तो   कानपुर शहर सौ वर्ग किलोमीटर से भी कहीं अधिक दायरे में बस चुका है। विकास की यह प्रक्रिया निरन्तर-अनवरत जारी है। शहर ने आैद्योगिक विकास में असंख्य उतार-चढ़ाव देखे। कभी उद्योग तेजी से खुले तो कभी बंद हुये। आैद्योगिक पलायन ने भी शहर की तस्वीर में बदलाव किये। ऐसा नहीं है कि आैद्योगिक विकास विराम लगा क्योंकि शहर के पश्चिम में उत्तर से दक्षिण तक दादानगर, पनकी, भौंती सहित कई आैद्योगिक एरिया का विकास हुआ। शहर की खाशियत में नानाराव पार्क (कम्पनी बाग), चिडियाघर, श्री राधाकृष्ण मंदिर, सनातन धर्म मंदिर, कांच का मंदिर, हनुमान मंदिर पनकी, सिद्धनाथ मंदिर, जाजमऊ, आनन्देश्वर मंदिर परमट, जागेश्वर मंदिर, सिद्धेश्वर मंदिर चौबेपुर, सांई मंदिर बिठूर, गंगा लव-कुश बैराज, छत्रपति साहू जी महाराज विश्वविद्यालय, भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान, हरकोर्ट बटलर प्रौद्योगिक संस्थान एवं चन्द्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय एवं जाजमऊ किला आदि हैं।                    प्रकाशन तिथि 21.11.2016   

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