Pages

Monday, November 28, 2016


 मोतीझील : आबादी को भरपूर आक्सीजन
  करगिल 'शहीद स्तम्भ" नमन स्थल
 
       'मोतीझील" शहर का एक शानदार सैर-सपाटा-पर्यटन स्थल तो वहीं राष्ट्र को समर्पित 'शहीद स्तम्भ"। जी हां, बात चाहे मार्निंग वाकर्स की हो या घूमने-फिरने आने वाले सैलानियों की हो..... शहर के बाशिंदों की पसंदगी में मोतीझील अपना अलग मुकाम रखता है। कानपुर के इस मोतीझील के बहुआयामी उपयोग साफ तौर पर दिखते हैं। अमर शहीद स्तम्भ तो वहीं शहर की एक बड़ी आबादी को पीने का पानी भी इसी झील से उपलब्ध होता है। मोतीझील में मुुख्य तौर पर दो बड़े जलाशय हैं। इस झील से बेनाझाबर को करीब आठ करोड़ लीटर पेयजल दैनिक उपलब्ध होता है। इससे शहर की एक बड़ी आबादी अपनी प्यास बुझाती है।

विशेषज्ञों की मानें तो 'मोतीझील" शहर के फेफड़ों का कार्य करती है। मंद-मंद प्रवाहमान हवा के झोके निश्चय ही मन-मस्तिष्क को प्रफुल्लित व तन-मन को तरोताजा कर देती है। ब्रिाटिशकाल में मोतीझील अस्तित्व में दिखी। अब हालात यह हैं कि मोतीझील को शहर का गौरव कहा जाए या आकर्षण तो शायद कोई अतिश्योक्ति न होगी। मुन्सिपेलटी ने वर्ष 1891 में कानपुुर शहर की आबादी को पीने का पानी उपलब्ध कराने पर विचार-विमर्श-मंथन किया। कानपुुर की आबादी उस वक्त अभिलेखीय अनुसार 151444 थी। एरिया भी 109230 था। इंजीनियर ए जे ह्यू ने पेयजल की योजना को आकार दिया। तय हुआ कि रानीघाट गंगा नदी से स्टीम इंजन के जरिये पीने का पानी लाया जायेगा। बृजेन्द्र स्वरुप पार्क को पूर्व में आवर झील के तौर पर जाना जाता था। यह इलाका खास तौर बेहना बाहुल्य था लिहाजा इसे बेनाझाबर के नाम से जाना जाने लगा।

वर्ष 1795 में रामपुर से दो सूबेदार भाई अबदुल्लाह खां एवं सादुल्लाह खां शहर आ कर बसे थे। लिहाजा इनकी सम्पत्तियां शहर में थीं। घुसरामऊ गांव का करीब चार मील का एरिया पेयजल की व्यवस्थाओं के लिए अधिग्रहीत किया गया था। वर्ष 1892 में इस परियोजना ने विधिवत कार्य प्रारम्भ किया। इसका विधिवत उद्घाटन एक मार्च 1894 को संयुक्त प्रांत के लेफ्टीनेंट गर्वनर रास्चार्ज कुस्थवेट ने किया था। मुन्सिपेलटी के चेयरमैन 1891 से 1894 तक एच एम वर्ड रहे। इसके बाद 1916 में मुन्सिपेलटी एक्ट बना। चुनाव हुए जिसमें रायबहादुर बाबू बिहारी लाल पटेल चेयरमैन निर्वाचित हुये। इसी दौरान मोतीलाल नेहरु कांग्रेस के प्रमुख बने। अंग्रेज इसे वाटर वक्र्स कहते थे तो हिन्दुस्तानी बेनाझाबर कहते थे। मोतीलाल की पत्नी स्वरुप रानी के नाम से स्वरुप नगर बसा। टाउनहाल में मुन्सिपेलटी दफ्तर छोटा पड़ने लगा तो वर्ष 1958 में मोतीझील में दफ्तर के लिए इमारत का निर्माण हुआ। घुसरामऊ नाम पसंद न आने पर इस इलाके को मोतीझील कहा जाने लगा।

वर्ष 1999 में एक बार फिर मोतीझील का बहुआयामी विकास रंगत लेते दिखा। 'करगिल युद्ध विजय" के बाद मोतीझील में 'शहीद स्तम्भ" बना। शहीद स्तम्भ में करगिल युद्ध के अमर शहीद सैनिकों के नाम अंकित किये गये। तत्कालीन आवास एवं नगर विकास मंत्री लाल जी टण्डन ने विधिवत उद्घाटन किया। कानपुर विकास प्राधिकरण के तत्कालीन उपाध्यक्ष नरेश नन्दन प्रसाद के नेतृत्व में मोतीझील के कलेवर बदले। दोनो झील में फव्वारा लगे तो वहीं मोतीझील को चौतरफा पेड़-पौधों से सुसज्जित किया गया। मोतीझील में नौकायन की व्यवस्था की गयी। मोतीझील शहर का एक शानदार पार्क, एक शानदार पर्यटन स्थल, शहीद स्तम्भ. मार्निंग वाकर्स प्वांइट आदि बहुत कुछ है। कानपुर मोतीझील को शहर का फेफड़ा कहा जाये तो शायद कोई अतिश्योक्ति न होगी। मार्निंग वॉक के लिए सुबह-सांझ शहर के विभिन्न इलाकों से शहर के बाशिंदे आते हैं।              प्रकाशन तिथि 28.11.2016    






No comments:

Post a Comment