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Wednesday, January 18, 2017

कानपुर का 'परेड" : शहर का एक खास

  
                 कानपुर का 'परेड" शहर का एक खास स्थान है। परेड चौराहा भी है तो परेड मैदान भी है। सभी कुछ खास। ब्रिाटिश हुकूमत में मुख्यत: सैनिक बैरक एवं सैनिक परेड के लिए यह स्थान आरक्षित था।

            'सिविलियन नॉट एलाऊड" एनाउंसमेट था। लिहाजा इस इलाके में शहर के बाशिंदे नहीं आते थे। छावनी बनने के बाद ब्रिाटिश सैनिक छावनी शिफ्ट हो गये। इसके बाद यह इलाका स्वत: खास से शहर का आम हो गया। धीरे-धीरे इस इलाके ने खासियत हासिल कर ली। अब शहर का यह सबसे बड़ा व्यापारिक एवं सांस्कृतिक इलाका हो गया। परेड को सांस्कृतिक सद्भाव का स्थल भी कहें तो शायद कोई अतिश्योक्ति न होगी क्योंकि इस मैदान में बहुत बड़ा बाजार लगता है।

            इस बाजार में अधिसंख्य दुकाने अल्पसंख्यक समुदाय की हैं लेकिन इसी मैदान में रामलीला का मंचन भी होता है। रामलीला के मंचन हेतु अल्पसंख्यक समुदाय स्वत: मैदान को खाली कर देता है। इस दौरान कारोबार पूरी तरह से बंद हो जाता है।

              इसे सौ वर्ष से भी कहीं अधिक समय हो गया। परेड मैदान के दक्षिण में स्टेशनरी का बड़ा मार्केट है तो पश्चिम में गैर-शाकाहारी उपयोग की वस्तुएं बिकती हैं। उत्तर में खास नवीन मार्केट है। खास व आम बाजार एक दूसरे के आमने-सामने हैं। रईस व्यक्तियों का बाजार नवीन मार्केट कहलाता है तो वहीं परेड गरीब का बाजार माना जाता है।
   


Tuesday, January 17, 2017

अंग्रेजी फौज का पहला ठिकाना 'जूही" था

  
       'स्वाधीनता आंदोलन" से पहले ब्रिाटानिया हुकूमत का सैनिक ठिकाना सबसे पहले 'जूही" में बना था। यूरोपियन व्यापारियों की रक्षा-सुरक्षा को ध्यान में रख कर सुरक्षा का ताना-बाना बुना गया। इस ताना-बाना में जूही को फौज ने ठिकाना बनाया।

          हालांकि कुछ समय बाद फौज को जूही से छावनी में शिफ्ट कर दिया गया। छावनी कानपुर नगर में ही है। विशेषज्ञों की मानें तो 1778 में अंग्रेज छावनी बिलग्राम के पास फैजपुर कम्पू में थी। यहां से हटा कर फौज को कानपुर लाया गया। छावनी के इस परिवर्तन का बड़ा कारण यूरोपियन व्यावसायियों को पर्याप्त सुरक्षा-संरक्षा देना था। कानपुर छावनी का अधिसंख्य हिस्सा अब शहर का हिस्सा बन गया। वर्ष 1840 के अभिलेखों की मानें तो छावनी की पूर्वी सीमा जाजमऊ तक थी। छावनी की यह सीमा गंगा के किनारे-किनारे सीसामऊ नाला होते हुये भैरोंघाट तक थी। 

             दक्षिण पश्चिम में कलक्टरगंज तक रही। यह सीमा दलेलपुरवा तक रही। छावनी के पूर्वी भाग में तोपखाना था। अंग्रेजी पैदल सेना की बैरक परेड मैदान में थी। स्वाधीनता आंदोलन के बाद छावनी सहित शहर का सीमांकन तय हुआ। छावनी का अधिसंख्य हिस्सा शहर के बाशिंदों को दे दिया गया।

             छावनी के मोहल्लों में सदर बाजार, गोराबाजार, लालकुर्ती, कछियाना, सुतरखाना, दानाखोरी आदि इलाके आते हैं। मेमोरियल चर्च, कानपुर क्लब, लाट साहब की कोठी यहां की रौनक हैं। छावनी का प्रबंधन कैंटोमेंट बोर्ड के सुपुर्द है। 


Monday, January 16, 2017

विक्टोरिया मिल : नहीं रही सुरक्षित

  
       एशिया का मैनचेस्टर कानपुर ने शनै:-शनै: अपनी ख्याति भी सुरक्षित नहीं रख सका। अफसोस तो होना ही था लेकिन किसी विरासत का खोना व सुरक्षित न रख पाना कहीं अधिक कष्टकारी होता है। 

          जी हां, ब्रिटिश हुकूमत में शहर में कई मिलों की स्थापना हुयी। इनमें से एक विक्टोरिया मिल भी थी। ब्रिटिश हुकूमत के बाद विक्टोरिया मिल निजी क्षेत्र के स्वामित्व में चली गयी। शनै:-शनै: स्वामित्व भारत सरकार के हाथों में आ गया। नेशनल टेक्सटाइल कारपोरेशन ने मिल का प्रबंधन संभाला लेकिन 'आंदोलन" ने मिल की साख को धुमिल किया तो वहीं मिल की धार को कुंद कर दिया। असंख्य झंझावात के बाद भारत सरकार ने वर्ष 2002 में ताला बंदी घोषित कर दी। 

             शहर में म्योर मिल के बाद विक्टोरिया मिल की स्थापना हुयी थी। म्योर मिल की स्थापना 1874 में हुयी थी। इसके एक साल बाद विक्टोरिया मिल की स्थापना हुयी थी। सूती वस्त्र उत्पादन की यह एक बड़ी मिल थी। इस मिल का उत्पादित सूती वस्त्र हिन्दुस्तान के साथ ही विदेश तक जाता था लेकिन आर्थिक झंझावात को अधिक समय तक प्रबंधन झेल नहीं सका लिहाजा वर्ष 2002 में मिल बंद हो गयी जिससे 1200 से अधिक श्रमिक बेरोजगार हो गये। हालांकि भारत सरकार की रीतियों-नीतियों के मुताबिक श्रमिकों को स्वैच्छिक सेवानिवृत्रि के लाभ दिये गये लेकिन दंश यह था कि रोजगार के अवसर छिन गये।

Sunday, January 15, 2017

म्योर मिल : आंदोलन का ग्रहण

  
          कानपुर शहर की ख्याति को आंदोलन का ग्रहण लगा। ग्रहण भी ऐसा जिससे सैकड़ों परिवार बर्बाद एवं बेरोजगार हो गये। अधिकार के लिए संघर्ष करना कोई गलत एवं नकारात्मक दिशा नहीं। 

     'आंदोलन" की दिशा 'रचनात्मक एंव सकारात्मक" हो तो नए आयाम बनते हैं लेकिन आंदोलन का स्वरुप स्वहित पर आधारित एवं केन्द्रीत हो तो विध्वंस लाजिमी है। कानपुर शहर में मिलों की एक लम्बी श्रंखला थी लेकिन शनै:-शनै: मिलें बंद हो गयीं। शहर की शान में शुमार सिविल लाइंस स्थित म्योर मिल भी अंतोगत्वा बंद हो गयी। नेशनल टेक्सटाइल कारपोरेशन के अधीन संचालित म्योर मिल करीब डेढ़ सौ वर्ष पहले अस्तित्व में आयी थी। वर्ष 1874 में म्योर मिल ने उत्पादन प्रारम्भ किया था। 

           इस मिल में करीब 63 श्रमिक कार्य करते थे। श्रमिक अशांति ने म्योर मिल की धड़धड़ाती मिलों को खामोश कर दिया। इस मिल में खास तौर से सूती वस्त्र उत्पादन होता था। सूट, तौलिया, गमछा, चादर सहित अन्य प्रकार का कपड़ा तैयार किया जाता था। श्रमिक अशांति ने मिल की मशीनों को कबाड़ में तब्दील कर दिया क्योकि श्रमिक कार्यविरत थे लिहाजा धीरे-धीरे मशीनों को जंग लगता गया लिहाजा मशीनें बेकार हो कर कबाड़ हो गयीं। कबाड़ मशीनों को बेंच दिया गया। श्रमिकों को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) दे दी गयी।

            अरबों की सम्पत्ति की देखरेख-रखवाली के लिए एक दर्जन से अधिक कर्मचारी तैनात हैं। यह मिल वर्ष 2002 में बंद हुयी। हालांकि इस मिल को संचालित करने-चलाने की कोशिशें कई बार हुयीं लेकिन कोशिशें कामयाब नहीं हो सकीं। लिहाजा मिल में ताला बंद। अब मिल परिसर में झाड़-झंखाड़ खड़ा हो रहा है।   
  
      


Friday, January 13, 2017

मेस्टन रोड : शहर का व्यापारिक क्षेत्र

  
       'मेस्टन रोड" शहर का एक व्यापारिक क्षेत्र। कानपुर शहर का खास मेस्टन रोड खरीद-फरोख्त की हलचल से आबाद रहने वाला इलाका है। बड़ा चौराहा से मूलगंज को जोड़ने वाले इलाके को मेस्टन रोड के तौर पर जाना-पहचाना जाता है। 

           खास तौर से यह इलाका थोक एवं फुटकार कारोबार का क्षेत्र है। करीब डेढ़ किलोमीटर के दायरे वाला यह बाजार इंसान की हर आवश्यकता को पूरा करता है। बारिश से बचने के लिए रैनकोट खरीदना हो या सर्दी से बचाव के लिए कोट-स्वेटर्स आदि कुछ भी खरीदना हो. सभी कुछ इस बाजार में उपलब्ध होगा। 

         इस इलाके में बिजली का सामान भी मिलेगा तो वहीं सिर ढ़कने वाली सुन्दर कैप भी मिलेगी। छाता लेना हो या पुलिस को अपनी वर्दी सिलवानी हो या खरीदनी हो। सभी कुछ यह बाजार देगा। जूता-चप्पल के तो शानदार शोरुम इलाके की शान है। मेस्टन रोड से हटिया बाजार, खोवा मण्डी, बिसाती बाजार, चौक सर्राफा, चौक स्टेशनरी बाजार, टोपी बाजार, मनीराम बगिया, रोटी वाली गली आदि सहित छोटे-बड़े कई बाजार हैं।अरबों के टर्नओवर वाला यह बाजार स्थानीय से लेकर उत्तर प्रदेश के विभिन्न इलाकों से आने वाले उपभोक्ताओं से आबाद रहता है तो वहीं मक्खन-मलाई का भी  स्वाद इन इलाकों में खूब मिलता है।  

Thursday, January 12, 2017

खेरेश्वरधाम : अश्वत्थामा की भी अगाध आस्था 

  

       'चमत्कार को प्रणाम" जी हां, फूल स्वत: रंग बदल दे तो उसे चमत्कार ही कहेंगे। फूल का यह कोई प्राकृतिक बदलाव नहीं बल्कि श्रद्धा, आस्था एवं विश्वास है। 

        उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर से करीब चालीस किलोमीटर दूर शिवराजपुर स्थित खेरेश्वर धाम मंदिर में शिवलिंग के पूजन-अर्चन के फूल स्वत: रंग बदलते हैं। निशाकाल में पूजन-अर्चन में शिवलिंग को सफेद रंग के फूल अर्पित किये जाते हैं लेकिन सुबह एक फूल का रंग स्वत: लाल हो जाता है। मान्यता है कि 'अश्वत्थामा" निशाकाल में पूजन करते हैं। मंदिर के पट बंद होने के बाद अश्वत्थामा शिवलिंग का पूजन-अर्चन करते हैं। मान्यता है कि खेरेश्वरधाम मंदिर के इस शिवलिंग की स्थापना महाभारतकाल में गुरू द्रोणाचार्य ने की थी। द्रोणाचार्य के पुत्र का जन्म भी इसी स्थान पर हुआ था। गुरू द्रोणाचार्य व उनके पुत्र अश्वत्थामा की अगाध आस्था शिव में थी। गुरू द्रोणाचार्य ने शिवलिंग की स्थापना कर खेरेश्वरधाम मंदिर का निर्माण कराया था। अगाध आस्था, श्रद्धा एवं विश्वास से ही मान्यता है कि अश्वत्थामा आज भी रात्रि-निशाकाल में शिवलिंग का पूजन-अर्चन करने आते हैं। शिवलिंग पर केवल गंगाजल ही अर्पित किया जाता है। 

           निशाकाल में पुजारी शिवलिंग का पूजन कर पट बंद कर देता है। पूजन में शिवलिंग पर सफेद फूल अर्पित किये जाते हैं। शिवलिंग का सफेद फूलों से श्रंगार किया जाता है लेकिन सुबह मंदिर पट खोले जाते हैं तो एक सफेद फूल का रंग स्वत: लाल मिलता है। साथ ही शिवलिंग पर अर्चन भी किया होता है। यह कोई किवदंती नहीं बल्कि हकीकत के तौर पर दिखती है। यह आश्चर्य ही है। मंदिर परिसर के उत्तर दिशा में 'गन्धर्व सरोवर" है। 'गन्धर्व सरोवर" वही स्थान है, जहां यक्ष ने युधिष्ठिर से प्रश्न किये थे। खेरेश्वरधाम मंदिर पूर्वमुखी है। खेरेश्वरधाम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित शिवलिंग के मध्य में स्थापित शिवलिंग ही प्राचीन शिवलिंग है। मंदिर में वास्तुकला भी देखने को मिलती है तो वहीं निर्माण में वास्तुशास्त्र का भी ख्याल रखा गया है। उत्तर ईशान कोण में मारुतिनन्दन का मंदिर है। इसी स्थान पर कुंआ भी है। कई मील के दायरे में फैला शिवराजपुर का यह क्षेत्र महाभारत काल में अरण्य वन क्षेत्र माना जाता था। इसी अरण्य वन में द्रोणाचार्य का आश्रम भी था। इसी आश्रम में महापराक्रमी अश्वत्थामा का जन्म हुआ था। 

           गंगा नदी से करीब दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित खेरेश्वरधाम में शिवलिंग पर गंगाजल ही अर्पित किया जाता है। मान्यता है कि शिवलिंग का निरन्तर पांच दिवस पूजन-अर्चन करने से अभिष्ट की प्राप्ति होती है। पूजन-अर्चन में महादेव को बेल-पत्र, फूल, अक्षत, भांग, धतूरा, केसर अर्पित किया जाता है। श्रावण मास में खेरेश्वरधाम में मेला भी लगता है।      


Wednesday, January 11, 2017

बड़ा चौराहा : शहर की धड़कन

  
       कानपुुुर के 'बड़ा चौराहा" को शहर की धमनी-धड़कन  कहें तो शायद कोई अतिश्योक्ति न होगी। जी हां, कमोबेश हकीकत तो यही है। जिला मुख्यालय जाना हो या फिर डाकघर मुख्यालय अथवा शहर के खास हाट-बाजार जाना हो तो बड़ा चौराहा से एक बार तो तारुफ करना ही होगा। 

       शहर का बड़ा चौराहा एक ऐसा स्थान है, जहां मुख्यालय से लेकर करीब-करीब हर मुख्य एवं आम गतिविधि से वाकिफ हो जायेंगे। अब तो बड़ा चौराहा पर पूर्व दिशा में शहर का सबसे बड़ा मॉल 'जेड स्क्वायर" भी बन चुका है। लिहाजा यह कह सकते हैं कि बड़ा चौराहा एक शॉपिंग सेंटर बन चुका है। हालिया रिलीज फिल्म देखनी हो या फिर मनपसंद गारमेंट्स की खरीददारी करनी हो... बहुत कुछ अब यहां उपलब्ध है। यानि शॉपिंग के मजे। इस स्थान पर कभी विदेशी बैंक एएनजेड ग्रिण्डलेज बैंक की शाखा थी लेकिन अब गगनचुम्बी मॉल खड़ा है। 

         गंगा स्नान करना हो तो बड़ा चौराहा से सरसैया घाट चंद कदम की दूरी पर है तो जिला मुख्यालय जाना हो तो भी निकट है। अधिसंख्य शासकीय विभाग इसी क्षेत्र में हैं। मुख्य डाकघर या डाकघर मुख्यालय भी इसी बड़ा चौराहा के एक कोने पर स्थित है। दाहिनी कोना पर शहर के शासकीय अस्पतालों में डफरिन हास्पिटल एवं उर्सला हार्समैन हास्पिटल संचालित हैं। यूं कहें कि उपचार हेतु शहर का प्रमुख स्थल। शहर की कोतवाली भी इसी बड़ा चौराहा के सन्निकट स्थित है। 

           इसी चौराहा के निकट श्री प्रयाग नारायण शिवाला भी है। प्रयाग नारायण शिवाला में महिलाओं के सौन्दर्य प्रसाधन का एक बड़ा बाजार है। सुबह से देर रात तक बड़ा चौराहा पर रौनक दिखती है। खास तौर पर शहर के किसी आंदोलन का तेवर इसी चौराहा पर दिखती है। जिला मुख्यालय पर प्रदर्शन करने वाले आंदोलनकारियों को इसी स्थान पर रोकने की कोशिश-कवायद होती है। कई बार आंदोलनकारी अपनी मांगों को मनवाने के लिए बड़ा चौराहा को जाम भी करते हैं। जिससे चौतरफा यातायात बाधित या बंद हो जाता है। किसी भी दृष्टि से देखें तो यह स्थान बड़ा चौराहा शहर का ह्मदय स्थल है।