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Tuesday, January 3, 2017

वैज्ञानिकों के लिए चुनौती बेहटा का 'जगन्नाथ मंदिर"

  
       वैज्ञानिक भी रहस्य नहीं खोज सके। उत्तर प्रदेश के कानपुर के भीतरगांव का भगवान 'जगन्नाथ मंदिर" श्रद्धा-उपासना एवं आस्था का केन्द्र-स्थल है तो वहीं वैज्ञानिकों के लिए एक 'चुनौती" है। 

           चुनौती रहस्य खोजने या कारण तलाश करने की है। बेहटा-भीतरगांव का भगवान 'जगन्नाथ मंदिर" अपने अस्तित्व में काफी कुछ खास समेटे है। यह अजूबा ही है कि मानसून अर्थात बारिश का मौसम आने से पहले ही मंदिर 'सूचना" दे देता है कि बारिश आने वाली है। मानसून आ चुुका है। मानसून आने से पहले मंदिर की छत से पानी टपकने लगता है। मंदिर करीब एक सप्ताह पहले मानसून की सूचना देता है।

           आश्चर्य है कि चिलचिलाती धूप में मंदिर की छत से पानी टपकने लगता है तो मानसून आने के बाद छत से पानी टपकना एकदम बंद हो जाता है। इस भव्य-दिव्य मंदिर को 'मौसम मंदिर" के तौर पर भी ख्याति है। इस रहस्य को जानने के कई प्रयास हो चुके हैं। पुरातात्विक विभाग के विशेषज्ञ एवं वैज्ञानिक दल ने कई बार अध्ययन एवं अवलोकन किया लेकिन छत से पानी टपकने का रहस्य नहीं खोज सके।  विशेषज्ञों की मानें तो बेहटा भीतरगांव के इस मंदिर का निर्माण 6 वीं शताब्दी में किया गया था। यह काल भारत का स्वर्णिम गुप्तकाल रहा। करीब 68.25 फुट ऊंचाई वाले शिखर एवं छत की संरचना में प्राचीनता की झलक साफ तौर पर दिखती है। 

          इस मंदिर के निर्माण में खास र्इंटों का इस्तेमाल किया गया है। करीब 18 इंच लम्बी, 9 इंच चौड़ी व तीन इंच मोटाई वाली र्इंटों का उपयोग किया गया। मंदिर करीब 36 फुट चौड़े एवं 47 फुट लम्बे प्लेटफार्म पर बना है। मंदिर की दीवारों की मोटाई भी कम नहीं है। दीवार की मोटाई कहीं-कहीं 8 फुट तक है। मंदिर का डिजाइन गुम्बदाकार मेहराब पर आधारित है। विशेषज्ञों की मानें तो इस शैली का उपयोग भारत में पहली बार किया गया था। कुछ यूं कहें कि मंदिर वास्तुकला का नायाब निर्माण है। करीब 15 फुट लम्बे एवं चौडे गर्भगृह की ऊंचाई भी दो मंजिल से कम नहीं। गर्भगृह की दर-ओ-दीवार पर देवी सीता के अपहरण से लेकर नर-नारायण की छवियां उकृष्ट दिखती हैं। हिन्दू अवधारणा का साक्षात अवलोकन यहां होता है। 

         हिन्दुओं की आस्था एवं विश्वास का यह स्थान 'लोककल्याणार्थ" भी जाना जाता है। मंदिर में भगवान जगन्नाथ एवं सुभद्रा सहित अन्य देवगण विराजमान हैं। पूजन-अर्चन एवं हवन आदि धार्मिक अनुष्ठान नियमित होते रहते हैं। मनौती के लिए श्रद्धालु दूर-दराज से आते हैं। शहर के ग्रामीण इलाके में होने के कारण मंदिर में अत्यधिक भीड़ तो नहीं होती लेकिन आसपास के इलाकों के बाशिंदों के मांगलिक कार्य अर्थात मुण्डन-कर्णछेदन संस्कार आदि होते हैं। मंदिर की बनावट बौद्ध मठ की भांति है। विशेषज्ञों का आंकलन है कि सम्राट अशोक के शासनकाल की वास्तुकला भी दिखती है तो वहीं चक्रवर्ती सम्राट हर्षवर्धन के शासनकाल के भी कयास लगाये जाते हैं। निर्माण में टेराकोटा शैली की भी झलक मिलती है तो वहीं वास्तुकला भी गजब है।     

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