सरसैया घाट :
गंगा आरती की दिव्यता-भव्यता
ब्रिटिश हुकूमत रही हो या लोकतांत्रिक व्यवस्था, मोक्षदायिनी 'गंगा" आैर 'गंगाजल" बाशिंदों की आस्था एवं विश्वास में सदैव रहे। भारत के खास प्रदेश उत्तर प्रदेश के कानपुर में गंगा नदी का अपना एक अलग वेग-आवेग रहा। कानपुर को यूं ही छोटी काशी नहीं कहा जाता क्योंकि कानपुर के बाशिंदों में आचरण-संस्कार काफी कुछ काशी से मिलते-जुलते दिखते हैं। मंदिरों में घंटा-घडियाल की टंकार तो सुबह गंगा स्नान.... हर-हर गंगे... हर-हर महादेव का जयघोष एक धार्मिक एवं आध्यात्मिक शहर को व्यक्त-बयां करता है।
शहर के प्रमुख गंगा घाटों में एक 'सरसैया घाट" भी है। जिला मुख्यालय के नजदीक 'सरसैया घाट" को भी कई बार अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ा। आजादी से पहले व स्वाधीनता के कुछ समय बाद तक 'सरसैया घाट" गंगा श्रद्धालुओं से आबाद रहता था लेकिन तीन से चार दशक के बीच गंगा शहर के मुख्य घाटों से रुष्ट हो गयी। गंगा को घाटों तक लाने के लिए आंदोलन से लेकर खोदाई तक हुयी। सरसैया घाट पर खोदाई का मुख्य श्रमदान चला। गंगा को घाटों पर लाने के लिए श्रमदान में फिल्म एवं धारावाहिक निर्माता रामानन्द सागर, अरविन्द त्रिवेदी, दीपिका चिखलिया, अरुण गोविल सहित असंख्य नामचीन हस्तियां शामिल हुयीं। शनै:-शनै: खण्डहर हो चले सरसैया घाट को एक बार फिर सजाया-संवारा गया। सुन्दरीकरण से गंगा के सरसैया घाट की तस्वीर तो बदली लेकिन 'गंगधारा" घाट पर नहीं आ सकी।
सरसैया घाट पर ही स्वाधीनता आंदोलन से ताल्लुक रखने वाला गंगा मेला भी लगता है। इस मेला में लाखों शहरी-बाशिंदे शामिल होते हैं। चूंकि सरसैया घाट जिला मुख्यालय के निकट है लिहाजा ग्रामीण इलाकों के बाशिंदे भी गंगा स्नान के लिए इसी घाट पर आते हैं। श्रद्धालुओं की सुविधा-सहूलियत के लिए घाट पर ही गोकुल प्रसाद धर्मशाला भी है। शहर के धर्मावलम्बियों ने स्वाधीनता आंदोलन से पहले धर्मशला का निर्माण कराया था। सरसैया घाट पर शिवालय श्रंखला भी है। श्रद्धालुओं के कल्याणार्थ एवं जनसेवार्थ आयोजन भी होते हैं। अभी कुछ वर्षों से सरसैया घाट पर गंगा जी की आरती का भव्य-दिव्य आयोजन प्रारम्भ हुआ। गंगा आरती की दिव्य-भव्य छटा निहारते ही बनती है।
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