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Wednesday, January 4, 2017

मुक्ता देवी के दर्शन, पल-क्षण छवि में बदलाव

  
       मान्यताओं-परम्पराओं का कोई अंत नहीं। आश्चर्य-अचरज भी कम नहीं। देश-विदेश के वैज्ञानिक-विशेषज्ञ भी भौचक रह गये। भगवती माता मुक्तेश्वरी देवी की छवि में बदलाव होना, किसी आश्चर्य से कम नहीं। श्रद्धा, आस्था एवं विश्वास का यह केन्द्र 'मुक्तेश्वरी देवी मंदिर" के तौर पर प्रख्यात है। इस मंदिर को मुुक्ता देवी के नाम से भी जाना जाता है। 


            भगवती मुक्ता देवी के दर्शन में पल-क्षण हर बार छवि में बदलाव महसूस करेंगे। यह कोई किवदंती नहीं, हकीकत है। छवि में निरन्तर बदलाव श्रद्धालुओं को आश्चर्य में डालता है। उत्तर प्रदेश के कानपुर में मुगल रोड पर मूसानगर है। मूसानगर वस्तुत: राजा-रजवाडों की राजधानी रहा है। सिठउपुरवा राज्य के राजा दैत्यराज बलि के शासनकाल में मूसानगर राज्य की  राजधानी रहा। यह समिश्रित क्षेत्र है क्योंकि एक ओर मूसानगर शहरी क्षेत्र से ताल्लुक रखता है तो वहीं यह इलाका चम्बल का हिस्सा भी माना जाता है। लोकगाथा की मानें तो यमुना नदी के किनारे स्थित यह भव्य-दिव्य मंदिर मुगल शासनकाल का माना जाता है।

            मान्यता है कि भगवती मुक्ता देवी के दर्शन करने मात्र से श्रद्धालुओं की मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। इस मंदिर की छवि सुहागिनों के कल्याणार्थ भी मान्य है। मुक्ता देवी का यह मंदिर परिसर एवं आसपास का क्षेत्र त्रेतायुग का इतिहास खुद-ब-खुद रेखांकित करता है। प्राचीन काल के अवशेष, प्रतिमायें एवं खण्डर त्रेतायुग से लेकर मुगलकाल की गाथा को खुद ही ब्यक्त-बयां करते हैं। दैत्यराज बलि की राजधानी मुक्ता नगर होने से इस क्षेत्र का नाम मूसा नगर एवं देवी स्थान का नाम मुक्ता देवी मंदिर प्रख्यात हुआ। देव, यक्ष एवं राजाओं की राजधानी होने के कारण इस क्षेत्र को देवलोक का दर्जा हासिल रहा। आसपास के साम्राज्य पर जीत हासिल करने के लिए दैत्यराज बलि ने विधि-विधान से 99 यज्ञ का अश्वमेघ यज्ञ कराया था। अभी भी उत्तरगामिनी में हवन-पूजन-अर्चन एवं यज्ञ की परम्परा है। विशेषज्ञों की मानें तो मंदिर की प्रतिमाओं से लेकर जर्जर खण्ड व अन्य अवशेष 50 से 2600 वर्षकाल के पुराने लगते हैं। 

            मंदिर क्षेत्र पठारी उबड़-खाबड़ एवं चम्बल का एहसास कराता है। मंदिर के पाश्र्व हिस्से से यमुना नदी का जल कोलाहल अवलोकित होता है तो प्रवेश क्षेत्र में शहरी आब-ओ-हवा महसूस होती है। शारदीय एवं चैत्र नवरात्र में भव्य-दिव्य मेला लगता है। जिसमें भारी संख्या में श्रद्धालुओं की आवाजाही होती है। भगवती मुक्तेश्वरी देवी के दर्शन करने हों तो शहर कानपुर से करीब पचास किलोमीटर की यात्रा करनी होगी।      


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