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Thursday, January 12, 2017

खेरेश्वरधाम : अश्वत्थामा की भी अगाध आस्था 

  

       'चमत्कार को प्रणाम" जी हां, फूल स्वत: रंग बदल दे तो उसे चमत्कार ही कहेंगे। फूल का यह कोई प्राकृतिक बदलाव नहीं बल्कि श्रद्धा, आस्था एवं विश्वास है। 

        उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर से करीब चालीस किलोमीटर दूर शिवराजपुर स्थित खेरेश्वर धाम मंदिर में शिवलिंग के पूजन-अर्चन के फूल स्वत: रंग बदलते हैं। निशाकाल में पूजन-अर्चन में शिवलिंग को सफेद रंग के फूल अर्पित किये जाते हैं लेकिन सुबह एक फूल का रंग स्वत: लाल हो जाता है। मान्यता है कि 'अश्वत्थामा" निशाकाल में पूजन करते हैं। मंदिर के पट बंद होने के बाद अश्वत्थामा शिवलिंग का पूजन-अर्चन करते हैं। मान्यता है कि खेरेश्वरधाम मंदिर के इस शिवलिंग की स्थापना महाभारतकाल में गुरू द्रोणाचार्य ने की थी। द्रोणाचार्य के पुत्र का जन्म भी इसी स्थान पर हुआ था। गुरू द्रोणाचार्य व उनके पुत्र अश्वत्थामा की अगाध आस्था शिव में थी। गुरू द्रोणाचार्य ने शिवलिंग की स्थापना कर खेरेश्वरधाम मंदिर का निर्माण कराया था। अगाध आस्था, श्रद्धा एवं विश्वास से ही मान्यता है कि अश्वत्थामा आज भी रात्रि-निशाकाल में शिवलिंग का पूजन-अर्चन करने आते हैं। शिवलिंग पर केवल गंगाजल ही अर्पित किया जाता है। 

           निशाकाल में पुजारी शिवलिंग का पूजन कर पट बंद कर देता है। पूजन में शिवलिंग पर सफेद फूल अर्पित किये जाते हैं। शिवलिंग का सफेद फूलों से श्रंगार किया जाता है लेकिन सुबह मंदिर पट खोले जाते हैं तो एक सफेद फूल का रंग स्वत: लाल मिलता है। साथ ही शिवलिंग पर अर्चन भी किया होता है। यह कोई किवदंती नहीं बल्कि हकीकत के तौर पर दिखती है। यह आश्चर्य ही है। मंदिर परिसर के उत्तर दिशा में 'गन्धर्व सरोवर" है। 'गन्धर्व सरोवर" वही स्थान है, जहां यक्ष ने युधिष्ठिर से प्रश्न किये थे। खेरेश्वरधाम मंदिर पूर्वमुखी है। खेरेश्वरधाम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित शिवलिंग के मध्य में स्थापित शिवलिंग ही प्राचीन शिवलिंग है। मंदिर में वास्तुकला भी देखने को मिलती है तो वहीं निर्माण में वास्तुशास्त्र का भी ख्याल रखा गया है। उत्तर ईशान कोण में मारुतिनन्दन का मंदिर है। इसी स्थान पर कुंआ भी है। कई मील के दायरे में फैला शिवराजपुर का यह क्षेत्र महाभारत काल में अरण्य वन क्षेत्र माना जाता था। इसी अरण्य वन में द्रोणाचार्य का आश्रम भी था। इसी आश्रम में महापराक्रमी अश्वत्थामा का जन्म हुआ था। 

           गंगा नदी से करीब दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित खेरेश्वरधाम में शिवलिंग पर गंगाजल ही अर्पित किया जाता है। मान्यता है कि शिवलिंग का निरन्तर पांच दिवस पूजन-अर्चन करने से अभिष्ट की प्राप्ति होती है। पूजन-अर्चन में महादेव को बेल-पत्र, फूल, अक्षत, भांग, धतूरा, केसर अर्पित किया जाता है। श्रावण मास में खेरेश्वरधाम में मेला भी लगता है।      


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