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Sunday, January 15, 2017

म्योर मिल : आंदोलन का ग्रहण

  
          कानपुर शहर की ख्याति को आंदोलन का ग्रहण लगा। ग्रहण भी ऐसा जिससे सैकड़ों परिवार बर्बाद एवं बेरोजगार हो गये। अधिकार के लिए संघर्ष करना कोई गलत एवं नकारात्मक दिशा नहीं। 

     'आंदोलन" की दिशा 'रचनात्मक एंव सकारात्मक" हो तो नए आयाम बनते हैं लेकिन आंदोलन का स्वरुप स्वहित पर आधारित एवं केन्द्रीत हो तो विध्वंस लाजिमी है। कानपुर शहर में मिलों की एक लम्बी श्रंखला थी लेकिन शनै:-शनै: मिलें बंद हो गयीं। शहर की शान में शुमार सिविल लाइंस स्थित म्योर मिल भी अंतोगत्वा बंद हो गयी। नेशनल टेक्सटाइल कारपोरेशन के अधीन संचालित म्योर मिल करीब डेढ़ सौ वर्ष पहले अस्तित्व में आयी थी। वर्ष 1874 में म्योर मिल ने उत्पादन प्रारम्भ किया था। 

           इस मिल में करीब 63 श्रमिक कार्य करते थे। श्रमिक अशांति ने म्योर मिल की धड़धड़ाती मिलों को खामोश कर दिया। इस मिल में खास तौर से सूती वस्त्र उत्पादन होता था। सूट, तौलिया, गमछा, चादर सहित अन्य प्रकार का कपड़ा तैयार किया जाता था। श्रमिक अशांति ने मिल की मशीनों को कबाड़ में तब्दील कर दिया क्योकि श्रमिक कार्यविरत थे लिहाजा धीरे-धीरे मशीनों को जंग लगता गया लिहाजा मशीनें बेकार हो कर कबाड़ हो गयीं। कबाड़ मशीनों को बेंच दिया गया। श्रमिकों को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) दे दी गयी।

            अरबों की सम्पत्ति की देखरेख-रखवाली के लिए एक दर्जन से अधिक कर्मचारी तैनात हैं। यह मिल वर्ष 2002 में बंद हुयी। हालांकि इस मिल को संचालित करने-चलाने की कोशिशें कई बार हुयीं लेकिन कोशिशें कामयाब नहीं हो सकीं। लिहाजा मिल में ताला बंद। अब मिल परिसर में झाड़-झंखाड़ खड़ा हो रहा है।   
  
      


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