कानपुर की शान, देश-विदेश में पहचान। जी हां, उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर की शान से 'लाल इमली" मिल को नवाजा जाए तो शायद कोई अतिश्योक्ति न होगी। लाल इमली के कम्बल हों या कोई अन्य उत्पाद वस्त्र उद्योग एवं उपभोक्ताओं के बीच अपनी खास अहमियत रखते हैं। लाल इमली शहर की केवल एक मिल ही नहीं बल्कि एक इतिहास भी है। एशिया के मैनचेस्टर की आैद्योगिक ताकत का एहसास वाकई यह शहर कराता है। आैद्योगिक ताकत में लाल इमली मिल को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। लाल इमली मिल शहर के बाशिंदों को 'समय" की याद भी दिलाता-बताता है।
करीब एक सौ चालीस वर्ष पहले 1876 में पांच अंग्रेज वी ई कूपर, जॉर्ज ऐलेन, गैविन एस जोंस, डाक्टर कॉडोन व बिवैन पेटमैन ने संयुक्त तौर पर एक छोटी सी मिल की स्थापना की थी। शहर के सिविल लाइंस में स्थापित एवं संचालित इस मिल ने धीरे-धीरे एक वृहद स्वरुप हासिल कर लिया। बताते हैं कि इसके संसद में एक विशेष कानून भी बना। लाल इमली मिल की स्थापना खास तौर से निर्बल एवं कमजोर तबके की आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर की गई थी। मिल में सस्ते ऊनी कम्बल एवं शॉल सहित अन्य वस्त्र उत्पादन खासियत रही। इस मिल से गरीबों को आवश्यकताओं के लिए वस्त्र आदि रियायती दर पर उपलब्ध होते थे तो वहीं ब्रिाटिश सेना के सिपाहियों के लिए कम्बल बड़ी तादाद में बनते थे। विस्तार के साथ ही इसके उत्पाद देश-विदेश में बड़ी तादाद में भेजे जाते थे। इस मिल का नाम प्रारम्भ में कानपोर वुलेन मिल्स रखा गया। मिल परिसर में एक इमली का विशाल पेड़ हुआ करता था। शनै: शनै: इमली इस मिल की पहचान बन गयी। चूंकि शहर में अन्य मिलें भी थीं। लिहाजा इस मिल को इमली वाला मिल के तौर पर जाना-पहचाना जाने लगा। आम बातचीत में इमली वाला मिल आ गया। वर्ष 1910 में अचानक इस मिल में आग लग गई। मिल की नई इमारत गोथ शैली में लाल र्इंट (ब्रिाक्स) से बनाई गयी। लिहाजा इस मिल को 'लाल इमली" की नई इबारत मिल गयी।
उस वक्त चूंकि घंटे एवं घड़ियों की कोई पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी। लिहाजा मिल प्रबंधन ने घंटाघर बनाने का फैसला लिया। वर्ष 1911 में घंटाघर बनना प्रारम्भ हुआ आैर वर्ष 1921 में बन कर तैयार हो सका। खास बात यह रही कि लाल इमली मिल का घंटाघर लंदन के बिग बेन की तर्ज पर बना। घंटाघर की ऊंचाई 130 फुट है। घंटाघर की टिकटिक करती सुइयां साफ तौर पर सुनी जा सकती हैं। इसे शहर की आैद्योगिक ताकत के तौर पर देखा जाने लगा। वर्ष 1947 में ब्रिाटिश देश छोड़ कर जाने लगे तो इसका प्रबंधन भारतीयों को सौंप दिया गया। कई उद्योगपतियों के हाथों से गुजरने के बाद आखिर वर्ष 1981 में लाल इमली मिल का नियंत्रण भारत सरकार ने अपने हाथों में ले लिया। इस मिल के ऊनी वस्त्र एवं कम्बल देश विदेश में मशहूर हैं। प्रकाशन तिथि 19.11.2016
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