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Friday, December 2, 2016

देश का तीसरा सबसे बड़ा कानपुर का चिड़ियाघर
'देश का तीसरा सबसे बड़ा चिड़ियाघर" ! जी हां, यह गौरव कानपुर के एलेन फॉरेस्ट जूलॉजिकल पार्क को हासिल है। करीब 76.65 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैले कानपुर प्राणी उद्यान में 1250 से अधिक जीव-जन्तु एवं पशु-पक्षी प्रवास करते हैं। ब्रिाटिश शासनकाल में एलेन वन जॉर्ज बर्नी एलेन ने प्राणी उद्यान की कल्पना की थी। जॉर्ज एक प्रसिद्ध ब्रिाटिश उद्योगपति थे। इसे वर्ष 1913-1918 के बीच साधारण तौर पर विकसित किया गया लेकिन इसे आम जनता के लिए नहीं खोला गया। आम जनता के लिए प्राणी उद्यान को 4 फरवरी 1974 को खोला गया।

हालांकि कानपुर प्राणी उद्यान 1971 में खोला गया लेकिन अपेक्षित विकास एवं जनसुरक्षा को ध्यान में रख कर आम जनता के लिए 1974 में खोला गया। ब्रिाटिश इण्डियन सिविल सर्विस के सदस्य सर एलेन प्राकृतिक परिवेश में प्राणी उद्यान खोलना चाहते थे किन्तु उनकी योजना ब्रिाटिशकाल में विधिवत आकार नहीं ले सकी। सर एलेन की जमीन होने के कारण भारत सरकार ने कानपुर प्राणी उद्यान का नामकरण उनके नाम पर ही किया। हालांकि अब इसे कानपुर प्राणी उद्यान के नाम से ही जाना जाता है। इसे शहर का शानदार पिकनिक स्पॉट कह लें या साधारण भाषा में चिड़ियाघर या फिर प्राणी उद्यान कहें।

शहर के आजाद नगर के दक्षिणी हिस्से में विकसित कानपुर प्राणी उद्यान जहां जीवंत पशु-पक्षियों एवं जीव-जन्तुओं से आबाद है तो वहीं डायनासोर जैसे भीमकाय जीव में मूर्तिशिल्प में देखने को मिलते हैं। डायनासोर जैसे भीमकाय जीव भी शहर के कलाकारों ने गढ़े। इस चिड़ियाघर में शेर, चीता, भालू, लकड़बग्घा, उदबिलाव, बाघ, तेंदुआ, गैंड़ा, लंगूर-बंदर, वनमानुष, चिम्पांजी, हिरण, विभिन्न प्रजाति की सर्प, विभिन्न प्रकार के पक्षी-चिड़िया आदि जीव-जन्तु एवं पशु-पक्षी इस प्राणी उद्यान की शोभा हैं। इस चिड़ियाघर के पुराने जीव में चिम्पांजी छज्जू की ख्याति शहर के साथ साथ दूर तक है।

शुतुरमुर्ग, न्यूजीलैण्ड का ऐमू, तोता, सारस, दुलर्भ घडियाल, दरियाई घोड़ा, हाथी-घोड़ा प्राणी उद्यान में हैं तो वहीं हैदराबाद का शेर भी दहाड़ से दर्शकों को रोमांचित करता है। प्राणी उद्यान में मछली घर है तो वहीं रात्रिचर गृह भी विशेष आकर्षण है। रात्रिचर गृह में उन जीव-जन्तुओं को स्थान दिया गया है, जो दिन में दृष्टिपात नहीं कर सकते। पशुओं-जीव-जन्तुओं के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए चिकित्सक की उपलब्धता भी सुनिश्चित है। खास यह है कि प्राणी उद्यान मार्निंग वाकर्स एवं इवनिंग वाकर्स को ताजगी देता है तो वहीं प्राणी उद्यान प्रबंधन सामाजिक भूमिका में भी अग्रणी रहता है। कभी हास्य-व्यंग्य एवं काव्य संगोष्ठियां आयोजित होती हैं तो कभी कमलकार अपनी मेघा से परिवेश को गौरान्वित करते है। कलाकार भी पीछे नहीं रहते। कला प्रतियोगितायें हों या चित्रकला कार्यशाला भी आयोजित होती है। प्राणी उद्यान में विशाल झील भी है। यह झील प्राकृतिक परिवेश को आैर भी अधिक समृद्ध बनाती है।   


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