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Sunday, December 4, 2016


ब्रिटिश सैनिकों की याद-स्मारक
कानपुर मेमोरियल चर्च
 
       'स्वाधीनता आंदोलन" ब्रिटिश हुकूमत के लिए भी कम पीड़ादायक नहीं रहा। स्वाधीनता आंदोलन में जहां एक ओर ब्रिटिश हुक्मरान हिन्दुस्तानियों पर जुल्म ढहाने में पीछे नहीं रहे तो उनको भी 'अपनों" को बड़ी तादाद में खोना पड़ा। चाहे 'बीबीघर काण्ड" हो या फिर 'कानपुर की घेराबंदी" हो। हिन्दुस्तानियों के उग्र तेवर देख कर ब्रिटिश हुक्मरानों के भी होश उड़ गये थे। वर्ष 1875 में 'कानपुर की घेराबंदी" में बड़ी तादाद में ब्रिाटिश सैनिक मारे गये। अफसोस-आक्रोश के अलावा ब्रिाटिश शासक कुछ नहीं कर सके।

मृत सैनिकों के 'स्मरण-याद" में कानपुर के छावनी क्षेत्र में 'कानपुर मेमोरियल चर्च" एवं 'स्मारक उद्यान" का निर्माण किया गया। कानपुर मेमोरियल चर्च को पहले 'ओल सोल्स कैथेड्रल चर्च" के नाम से जाना जाता था। कानपुर क्लब के पास एलबर्ट रोड पर स्थित कानपुर मेमोरियल चर्च का निर्माण मृत ब्रिटिश सैनिकों के याद के साथ ही वास्तु शिल्प का एक विशिष्ट आयाम है। इस चर्च का डिजाइन पश्चिम बंगाल में रेलवे में कार्यरत वास्तुकार वाल्टर ग्रानविले ने किया था। उस समय कानपुर को कावनपुर के नाम से जाना जाता था। लौम्बार्ड संचरना पर बने इस चर्च के एक किनारे ब्रिटिश सैनिक कब्रिस्तान है। इस चर्च के एक हिस्से में स्मारक उद्यान भी है। चर्च में गोथिक शैली भी दिखती है। लाल र्इंट से बना यह चर्च विशेष आकर्षण का केन्द्र है। स्मारक उद्यान को हेनरी यूल ने डिजाइन किया था। इस उद्यान के दो प्रवेश द्वार हैं। खूबसूरत एवं नक्काशीदार परिसर में एक खूबसूूरत परी विशेष आकर्षित करती है। यह स्थल शांति के प्रतीक के तौर पर माना जाता है।

केन्द्र में एक देवदूत की प्रतिमा स्थापित है। इसकी भुजायें एक दूसरे के उपर हो गयी हैं। यह प्रतिमा एक तोरण को थामे है। इसे विश्व शांति का प्रतीक माना जाता है। इस मूर्ति का निर्माण मूर्तिकार बारों कार्लो मारोचेट्टी ने किया था। यह ऐतिहासिक चर्च अपने में असंख्य संस्मरण समेटे है। वर्ष 1875 के बाद संरचनाओं में कई परिवर्तन भी किये गये। चूंकि चर्च को एक स्मारक स्थल के तौर पर देखा जाता है लिहाजा 1857 के सशस्त्र संघर्ष सहित अनेक प्रसंगों को रेखांकित किया गया है। ललित कला के साथ ही मध्ययुगीन विचार धारा भी अवलोकित होती है। इमारत के भीतर कलाकृतियां एवं रेखांकन अतीत से रुबरु कराते हैं।  





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