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Friday, December 30, 2016

हिन्दुस्तानियों की होली के सामने झुकी ब्रिटानिया हुकूमत 


      होली के इन्द्रधनुषी रंगों के सामने भी ब्रिटानिया हुकूमत को झुकना पड़ा था। जी हां, ब्रिाटानिया हुकूमत को हिन्दुस्तानियों की होली के सामने न केवल झुकना पड़ा बल्कि देश में एक नायाब परम्परा भी पड़ गयी।

       होली के देश भर में अजब-गजब रंग-ढंग दिखते हैं लेकिन कनपुरिया होली के अंंदाज ही निराले हैं। उत्तर प्रदेश के कानपुर में आैसतन एक सप्ताह तक होली का हुडदंग चलता है। रंग अबीर के छीटों-बौछारों से आठ दिनों तक शहर सराबोर रहता है। अनुराधा नक्षत्र  तक होरिहारों की मस्ती घर-गली, गलियारों से लेकर सड़कों तक दिखती है। उत्तर प्रदेश का कानपुर एक जमाने में एशिया का मैनचेस्टर का खिताब रखता था। आैद्योगिक कल-कारखानों से लेकर लघु उद्योगों से कानपुर आबाद था। मेहनतकश मजदूरों के लिए कानपुर जाना जाता था। देश के कोने-कोने, गांव-गलियारों के मजदूर यहां रोजी रोटी कमाते थे। खास तौर उत्तर प्रदेश का पूर्वांचल यहीं बसता था। कानपुर का हटिया, नौघड़ा, लाठी मोहाल, राम गंज, शकरपट्टी, दाल मण्डी, नयागंज, जनरलगंज, सिरकी मोहाल व घुमनी मोहाल आदि सहित शहर के घनी आबादी वाले इलाकों में गरीबों व मजदूरों का आशियाना होता था।      

            मेहनतकश मजदूर दो तीन दिन होली का हुड़दंग करते थे। रंगों से सराबोर रहते थे। यह बात 1942 की है।  अंग्रेज हुक्मरानों को यह सब नागवार गुजरता था। एक  अंग्रेज अफसर ने एक दिन से अधिक होली खेलने पर रोक लगा दी। हुआ यह कि होरिहारे होली खेल रहे थे। उसी दौरान एक घुडसवार अंग्रेज अफसर गुजरा। होली का रंग उस अंग्रेज के उपर पड़ गया।  अंग्रेज अफसर गुस्से खूब लाल पीला हुआ। अंग्रेज अफसर ने एक दिन से अधिक होली खेलने पर रोक लगा दी। अंग्रेज कलक्टर ने इतना सख्त फरमान जारी कि एक दिन से अधिक जो भी होली खेलेगा, उसे गिरफ्तार कर लिया जायेगा। बस इस सांस्कृतिक गुलामी के खिलाफ शहर के बाशिंदों की फौज व मजदूर सड़कों पर उतर आये। कनपुरिया तेवर तीखे हो चले। शहर के बाशिंदों ने एक स्वर में आवाज बुलंद की कि अब एक दो दिन नहीं बल्कि एक सप्ताह होली खेलेंगे।

          इस एलान के साथ ही हटिया के रज्जन बाबू पार्क में इलाके के बाशिंदों ने तिरंगा झण्डा फहरा दिया। बस क्या था, अंग्रेज हुक्मरान बगावत करने वाले हिन्दुस्तानियों की खोजबीन में छापामारी करने लगे। तिरंगा फहराने वालों में लाला बुद्धू लाल, गुलाब चन्द सेठ, मूलचन्द सेठ, अमरीक सिंह, इकबाल कृष्ण कपूर, शिवनारायण, जागेश्वर त्रिवेदी, विश्वनाथ मेहरोत्रा, हरिमल मेहरोत्रा, रघुवर दयाल भट्ट, किशन शर्मा, कन्हैया लाल गुप्ता व पीताम्बर लाल आदि थे। इस एलान से शहर के बाशिंदे खास तौर से मजदूर खुशी से झूम उठे क्योंकि एक दो दिन के बजाय एक सप्ताह होली खेलने का मौका मिला। अंग्रेजी हुकूमत ने आदेश की अवज्ञा में लाला बुद्धू लाल, गुलाब चन्द सेठ सहित 43 लोगों को गिरफ्तार कर लिया। विरोध में शहर के लोग सड़कों पर उतर आये। चारों ओर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ नारेबाजी होने लगी।

         आंदोलन के उग्र तेवर देख अंग्रेज हुक्मरानों की नींद हराम हो गयी। इस आंदोलन में हिन्दू, मुस्लिम सिख सभी शामिल थे। आंदोलन को देख कर अन्तोगत्वा अंग्रेज हुक्मरानों को झुकना पड़ा। सभी गिरफ्तार रिहा कर दिये गये। जिस दिन रिहाई की गयी, उस दिन अनुराधा नक्षत्र था। ज्योतिष के अनुसार अनुराधा नक्षत्र प्रतिष्ठान व दुकान, कारोबार खोलने के लिए शुभ माना जाता है। आंदोलनकारियों की रिहाई होने के बाद उसी दिन अनुराधा नक्षत्र में दुकानों को खोला गया। होली का रंग खेला गया। हटिया के रज्जन बाबू पार्क से होरिहारों का मेला निकला। एक भैंसा ठेला पर एक पुतला रख कर मेला निकाला गया। रंग खेलते होरिहारों की फौज शहर के विभिन्न सड़कों से होते हुये सरसैया घाट पहंुचे। गंगा में नहा धोकर रंग साफ किया। शाम को उसी स्थान सरसैया घाट पर मेला लगा। होली गंगा मेला की परम्परा आज भी कायम है।

        धीरे-धीरेे होली गंगा मेला का स्वरूप बढ़ता गया। होली के बाद सरसैया घाट पर शाम को भव्य दिव्य मेला लगता है। एक किलोमीटर से अधिक दायरे में लगने वाला होली गंगा मेला एक  भव्य सांस्कृतिक आयाम की शक्ल में दिखता है। होली गंगा मेला में सैकड़ों की तादाद में पाण्डाल लगते हैं। इनमें पुलिस प्रशासन, जिला प्रशासन, नगर निगम, बैंक, राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों, सांस्कृतिक संस्थाओं सहित अनेकानेक प्रकार के पाण्डाल लगते हैं। ठंडई से लेकर पान, लौंग, इलाइची व सौंफ सहित बहुत कुछ इन पाण्डालों में सेवाभाव व  मिलनचार में उपलब्ध रहता है। शहर की राजनीतिक हस्तियां भले देश की शीर्ष सत्ता में हों लेकिन होली गंगा मेला में आना नहीं भूलते। दोपहर से प्रारम्भ होकर होली गंगा मेला देर रात तक चलता रहता है। होली से लेकर अनुराधा नक्षत्र तक शहर रंगों से सराबोर रहता है। हटिया होली गंगा मेला के संयोजक ज्ञानेन्द्र विश्नोई ज्ञानू कहते हैं कि कानपुर का होली गंगा मेला एक परम्परा के साथ ही सांस्कृतिक गुलामी के खिलाफ एक जंग की याद भी है। अब तो होली गंगा मेला एक सांस्कृतिक धरोहर की भांति है। 

                           

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