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Friday, December 23, 2016

सिद्धेश्वर मंदिर : हर मनोकामना पूर्ण

  
       स्वाधीनता आंदोलन की बात हो या धर्म-आध्यात्म का प्रसंग हो, कानपुर का अपना एक अलग ही अंदाज रहा। कानपुुर को छोटी काशी कहा जाये या क्रांतिकारियों की रणभूमि कहा जाये तो शायद कोई अतिश्योक्ति न होगी।

         गंगा तट पर बसे आैद्योगिक शहर कानपुर का कोई सानी नहीं दिखता। शहर के पूर्वी इलाका जाजमऊ शिव स्थान के तौर पर अपनी पहचान रखता है। जाजमऊ का शिव स्थान 'सिद्धेश्वर मंदिर" से ख्याति प्राप्त है। इसे कानपुर का 'स्वर्ण मंदिर" कहा जाये तो शायद कोई अतिश्योक्ति न होगी क्योंकि चाहे शिखर के कलश हों या शिवलिंग या फिर अरघा, सभी रजत से लेकर स्वर्ण जड़ित है। कोई यह नहीं बता सकता कि इस स्वर्ण मंदिर में कितनी तादाद में स्वर्ण एवं रजत का उपयोग किया गया है लेकिन इतना अवश्य है कि स्वर्ण एवं रजत आभा का अपना एक अलग ही आलोक है। 

              किवदंती है कि भगवान शिव यहां स्वयं विराजमान हैं। पुरातनकाल में जाजमऊ में राजा जयाद का राज्य था। राजा जयाद धार्मिक पृवत्ति के थे लिहाजा सिद्धनाथ दरबार की स्थापना उनके शासनकाल में ही हुयी। किवदंती है कि राजा जयाद भगवान शिव के अनन्य भक्त थे। राजा जयाद ने शिव की घोर उपासना-तपस्या की जिस पर भगवान शिव प्रसन्न हुये आैर प्रकट होकर वरदान मांगने को कहा। राजा जयाद अतिप्रसन्न थे। राजा ने वरदान मांगा कि आप जाजमऊ में ही बस जाइए। भगवान शिव ने कहा कि सौ यज्ञ पूर्ण करो। इच्छा की पूर्ति होगी। राजा ने 99 यज्ञ पूर्ण कर लिये लेकिन 100 यज्ञ में इन्द्रदेव ने विघ्न डाल दिया जिससे सौ यज्ञ पूर्ण नहीं हो सके। समयकाल गुजरने के साथ ही स्थितियां भी बदलती गयीं। राजा जयाद गौशाला की एक ही गाय के दुग्ध का सेवन करते थे। खास बात यह थी कि इस गाय के पांच थन थे। यह गाय जाजमऊ टीला पर दुग्धदान करती थी। गुप्तचरों से जानकारी मिली तो राजा को कौतुहल हुआ। 
      

          दुग्धदान वाले स्थल की खोदाई करायी गयी तो उसमें भगवान शिव का शिवलिंग प्राक्ट्य हुआ। उसी स्थान पर सिद्धेश्वर मंदिर है। शिवलिंग के प्राक्ट्य के बाद राजा जयाद ने शिव मंदिर का निर्माण कराया। कहावत है कि भगवान शिव स्वयं यहां विराजमान हैं। जाजमऊ हिन्दू-मुस्लिम मिली जुली आबादी वाला क्षेत्र है। मुस्लिम आबादी करीब अस्सी प्रतिशत है जबकि हिन्दू आबादी करीब बीस प्रतिशत है। इस इलाके में कभी भी साम्प्रदायिक दंगे नहीं हुये। यह स्थान क्रांतिकारियों का रणनीतिक स्थल भी रहा। क्रांतिकारियों की रणनीति इस स्थान पर भी बनती रही। श्रावण मास में सिद्धेश्वर के दर्शन-पूजन-अर्चन के लिए बड़ी संख्या श्रद्धालु आते हैं। मान्यता है कि श्रद्धालुओं को यहां इक्षित वरदान की प्राप्ति होती है।     


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