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Wednesday, December 21, 2016

पेशवा की विरासत : बनखण्डेश्वर महादेव मंदिर

  
       आस्था, विश्वास एंव श्रद्धा के स्थल भी स्वाधीनता आंदोलन में क्रांतिकारियों के केन्द्र बने थे। सामान्यत: धर्म स्थल या पूजा-पाठ के स्थल पूजन-अर्चन तक ही सीमित रहते हैं लेकिन ऐसा नहीं। बिठूर स्थित भगवान शिव का मंदिर बनखण्डेश्वर महादेव का मंदिर आस्था, विश्वास एवं श्रद्धा के साथ साथ क्रांतिकारियों का केन्द्र भी था। बिठूर स्थित बनखण्डेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना भी क्रांतिकारियों ने की थी। श्रद्धा, आस्था एवं विश्वास के इस केन्द्र को पेशवा की विरासत कहा जाये तो शायद कोई अतिश्योक्ति न होगी। किवदंतियों की मानें तो बाजीराव पेशवा एक बार बिठूर आ रहे थे। मंधना के पास जंगल में रात हो गयी तो पेशवा ने जंगल में ही डेरा डाल दिया। सुबह पेशवा की नींद खुली तो देखा टीले पर एक गाय खड़ी है। 

गाय टीले पर दुग्धदान कर रही है। टीला बेल के पत्तों से ढ़का था। बाजीराव पेशवा को यह सब देख कर आश्चर्य हुआ। पेशवा ने टीला स्थल को कौतुहलवश खोदवाया तो शिवलिंग का प्राक्ट्य हुआ। विधि-विधान से शिवलिंग की स्थापना की गयी। बाजीराव पेशवा ने लक्ष्मीबाई का कर्णछेदन भी इसी स्थान पर कराया था। हर्ष-खुशी में बाजीराव पेशवा ने जयपुर से अन्य शिवलिंग मंगा कर उसी स्थान पर स्थापित कराया था। चूंकि यह वन क्षेत्र था लिहाजा ग्रामीणों के बीच 'बनखण्डेश्वर महादेव" की ख्याति हुयी। अब इस धर्म स्थल को बनखण्डेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है।

 उसी काल से इस स्थल पर दो शिवलिंग स्थापित हैं। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ पेशवा की लड़ाई की रणनीति भी इसी स्थल पर बनती थी। बाजीराव पेशवा ने तात्याटोपे के साथ मिल कर इसी स्थान पर मैस्कर घाट पर हमले की रणनीति बनायी थी। बताते हैं कि अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हमला बोलने से पहले पेशवा बनखण्डेश्वर महादेव के दर्शन करने अवश्य जाते थे। मंदिर में माथा टेकने के बाद ही लड़ाई-सघर्ष के लिए आगे बढ़ते थे। यही वह स्थान है, जहां बाजीराव पेशवा ने तात्याटोपे को अपना सिपहसलार बनाया था। भेंट स्वरुप तात्या को टोपी दी थी। इसी के बाद तात्या का नाम टोपे पड़ गया। स्वाधीनता आंदोलन की अधिसंख्य रणनीति इसी स्थान पर बनती थी। आस्था है कि बेल पत्र पर अपनी मनौती लिख कर बनखण्डेश्वर महादेव को अर्पित करने से इच्छित मनोकामना की पूर्ति होती है। शहर से करीब बीस किलोमीटर दूर स्थित इस मंदिर की मान्यता यह भी है कि श्रावण मास में एक सौ एक बेल पत्र बनखण्डेश्वर महादेव को अर्पित करने से मनोकामना पूर्ण होती है। 

ब्रिटिश हुकूमत व स्वाधीनता आंदोलन की जंग में ब्रिाटिश हुकूमत को सतना में पेशवा का खजाना नहीं मिला तो ब्रिटिश हुकूमत खिसिया गयी। ब्रिाटिश हुकूमत को पता चला कि पेशवा ने अपना खजाना बिठूर-मंधना स्थित मंदिर में छिपा रखा है। खजाना हासिल करने के लिए ब्रिाटिश हुकूमत ने मंदिर में हमला बोल दिया लेकिन ब्रिाटिश सैनिकों को उल्टे पांव भागना पड़ा क्योंकि सांप-बिच्छू एवं मधुमक्खियों ने सैनिकों पर हमला बोल दिया था। बताते हैं कि भगवान शिव के इस स्वरुप अर्थात बनखण्डेश्वर महादेव मंदिर की रक्षा-सुरक्षा आज भी सांप-बिच्छू व मधुमक्खियां करते हैं। खास बात यह है कि बनखण्डेश्वर महादेव की तीन प्रहर पूजन-अर्चन किया जाता है। खास तौर से श्रावण मास में भव्यता अलग ही रहती है। बाजीराव पेशवा ने बनखण्डेश्वर महादेव के पूजन-अर्चन के लिए बिठूर के एक ब्रााह्मण को रखा था। उसी परिवार का ब्रााह्मण अभी पूजन-अर्चन करता-कराता है। श्रावण मास में इसी क्षेत्र में भव्य-दिव्य मेला लगता है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु-भक्त दर्शन-पूजन एवं मनौती के लिए आते हैं। 

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