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Friday, December 16, 2016

मां बुद्धादेवी मंदिर :
भोग में सिर्फ हरी सब्जियां
  
       कानपुर को आैद्यागिक राजधानी के साथ ही मंदिरों का शहर कहा जाये तो शायद कोई अतिश्योक्ति न होगी। मंदिर श्रंखला प्राचीनकाल की। शहर के ह्मदयस्थल खोया बाजार-मेस्टन रोड इलाके में मां भगवती बुद्धादेवी का प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर की भी अपनी मान्यताएं एवं परम्पराएं हैं। शहर के खोया बाजार-हटिया बाजार के मध्य स्थित इस मंदिर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ अनवरत बनी रहती है। खास तौर से नवरात्र के दिनों में तो श्रद्धालुओं की अपार भीड़ होना लाजिमी हो जाता है। श्रद्धालुओं के हाथों में फूूल-प्रसाद की डलिया व मां भगवती के जयघोष से अनुगूंजित नारों से परिवेश। खास बात यह है कि मां भगवती बुद्धा देवी को प्रसाद में ताजी एवं हरी सब्जियां ही भेंट की जाती है। सब्जियों में मसलन लौकी, बैंगन, पालक, टमाटर, गाजर, मूली, तरोई, हरी मटर, सीताफल, टीण्डा, भिण्डी एवं आलू आदि मां को प्रसाद में भेंट किये जाते है। मां भगवती के इस स्वरुप को मां बुद्धादेवी के नाम से ख्याति मिली। गौरतलब है कि इस मंदिर में न तो कोई पुजारी है आैर न कोई पुरोहित। 


माली ही मंदिर की व्यवस्था संभालते हैं। मंदिर सौ वर्ष से अधिक पुराना है। प्राचीनकाल में इस स्थान पर फूल-पौधों से आच्छादित बागीचा था। इस बागीचा की देखरेख माली परिवार करता था। माली परिवार के मुखिया को रात स्वप्न में मां भगवती ने दर्शन दिये। स्वप्न एवं दर्शन का सिलसिला अनवरत चलता रहा। अन्तोगत्वा, माली ने बागीचा में खोदाई करायी तो खोदाई में मां भगवती के इस स्वरुप का प्राक्ट्य हुआ। खोदाई दिन तक अनवरत चली। मां भगवती के इस स्वरुप बुद्धादेवी की स्थापना के लिए चबूतरा बना। चबूतरा पर मां बुद्धादेवी की स्थापना की गयी। चूंकि मां बुद्धादेवी का प्राक्ट्य बागीचा से हुआ लिहाजा भक्त-श्रद्धालु प्रसाद में ताजी एवं हरी सब्जियां चढ़ाने लगे। धीरे-धीरे प्रसाद में हरी एवं ताजी सब्जी चढ़ाने की परम्परा बन गयी। शनै: शनै: चबूतरा ने भी मंदिर का स्वरुप ले लिया। मान्यता है कि मां बुद्धादेवी अपने भक्तों की हर मुराद पूरी करती है।   


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