एल्गिन मिल्स : डेढ़ सौ वर्ष का सफर पूरा
'आवश्यकता" न हो तो कुछ भी न हो। या यूं कहें कि आवश्यकता ही अविष्कार की जननी होती है। उत्तर प्रदेश का कानपुर शहर यूं ही 'एशिया का मैनचेस्टर" नहीं बना। कुछ आवश्यकता ही थी कि ब्रिाटिश हुक्मरानों को कानपुर को आैद्योगिक राजधानी के तौर पर विकसित करना पड़ा। शहर का विकास होने से आवश्यकतायें भी बढ़ने लगीं।
कानपुर का एल्गिन मिल शायद शहर का पहला बड़ा मिल बना। विशेषज्ञों की मानें तो कपास से वस्त्र उत्पादन करने वाला एल्गिन मिल शहर का पहला मिल था। अब तो यह मिल स्थापना के एक सौ पचास वर्ष अर्थात वर्षगांठ मना चुका है। इस मिल की स्थापना 1864 में एल्गिन मिल्स के तौर पर की गयी थी। एल्गिन मिल्स ब्रिाटिश इण्डिया कारपोरेशन की सहायक कम्पनी के तौर पर स्थापित हुयी थी। स्थापना से अब तक डेढ़ सौ वर्ष से भी अधिक समय में एल्गिन मिल्स ने असंख्य उतार-चढ़ाव देखे। श्रमिक संघर्ष भी दिखा तो वहीं एल्गिन मिल्स में उत्पादन को पुन: चालू करने की तमाम कोशिशें भी हुयीं। डेढ़ सौ वर्ष के इस सफर में जहां एक ओर मिल ने हजारों रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये तो वहीं इस मिल का वस्त्र उत्पाद देश-विदेश तक पहंुचता रहा।
विशेषज्ञों की मानें तो देश की स्वाधीनता से पहले ब्रिाटिश सैनिकों को कपड़ा व अन्य उपयोग की आवश्यकताओं की उपलब्धता को ध्यान रख कर मिल की स्थापना की गयी। कपास से विभिन्न प्रकार के कपड़ों का उत्पादन किया जाता था। ब्रिाटिश सैनिकों की आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ कपड़ा उत्पाद देश एवं विदेशों को भेजा जाता था। यह कहा जाये कि पूर्वांचल सहित आसपास के इलाकों के लोगों को रोजगार भी मिला। शनै: शनै: मिल बीमार होने लगी। मिल का पुनरुद्धार करने की कोशिशें भी हुयीं। आैद्योगिक एवं वित्तीय पुर्ननिर्माण बोर्ड ने वित्तीय सहायता के तौर पर 193 करोड़ का आर्थिक पैकेज दिया गया जिससे मशीनरी का बदलाव एवं श्रमिकों का बकाया वेतन भुगतान किया जा सके। बोर्ड ने प्रस्ताव पारित कर एक बार फिर करघों को बेंच कर 15 करोड़ की धनराशि जुटायी गयी। कुछ समय मिल चलने के बाद एक बार फिर स्पीड ब्रोकर आ गया। इसके बाद केन्द्रीय आर्थिक सहायता का दौर निरन्तर जारी रहा। पार्वती बागला रोड स्थित इस मिल से ताल्लुक रखने वाली अरबों की सम्पत्तियां अभी भी हैं।
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