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Wednesday, December 14, 2016

आनन्देश्वर मंदिर 
श्रद्धालुओं की अगाध श्रद्धा
दर्शन से क्लेश कटे, द्वैश खत्म
 
       मेगा सिटी कानपुर को 'छोटी काशी" कहा जाये तो शायद कोई अतिश्योक्ति न होगी। 'छोटी काशी" से आशय यह है कि शहर में सौ से अधिक मंदिर श्रंखला विद्यमान है। ब्राह्ममुहूर्त से ही शहर घंटा-घडियाल के घोष-टंकार से अनुगूंजित होने लगता है। शहर का एक ऐसा ही स्थान बाबा आनन्देश्वर मंदिर है। गंगातट परमट पर स्थित बाबा आनन्देश्वर मंदिर में शिव दर्शन के लिए श्रावण मास में भक्तों-श्रद्धालुओं का रेला उमड़ता है। मान्यता है कि बाबा आनन्देश्वर मंदिर में साक्षात शिव दर्शन देते हैं। बाबा आनन्देश्वर मंदिर पुरातनकाल-महाभारतकाल का माना जाता है। किवदंती है कि महाभारतकाल में दानवीर कर्ण भगवान शिव के दर्शन-पूजन-अर्चन के लिए आते थे। इस पूजन-अर्चन के दौरान एक गाय भी आती थी। दानवीर कर्ण के पूजन-अर्चन वाले स्थल पर ही गाय भी दुग्धदान करती थी। राजा कौशल की गायों को परमट गांव चारागाह में चराने चरवाहा आता था। राजा कौशल की गाय आनन्दी दूध नहीं देती थी। जिस पर राजा कौशल ने चरवाहा से नाराजगी व्यक्त की। चरवाहा ने तहकीकात की तो दुग्धदान की हकीकत सामने आयी। चरवाहा ने राजा कौशल को हकीकत से वाकिफ कराया तो राजा कौशल ने उक्त स्थल की खोदाई करायी। जिसमें शिवलिंग प्रकट हुआ।

अनतोगत्वा,  राजा कौशल ने उसी स्थान पर शिवलिंग को प्राण प्रतिष्ठित करा दिया। चूंकि गाय का नाम आनन्दी था लिहाजा, राजा कौशल व बाशिंदों ने शिवमंदिर को बाबा आनन्देश्वर के नाम से ख्याति दी। सोमवार को खास तौर से दर्शनार्थियों की सर्वाधिक भीड़ होती है लेकिन सामान्य दिनों में भी भक्तों-श्रद्धालुओं का दर्शन के लिए तांता लगा रहता है। धर्माचार्यों की मानें तो सोमवार का अंक दो होता है। यह स्थिति चन्द्रमा का प्रतिनिधित्व करती है। चन्द्रमा मन का संकेतक होता है। चन्द्रमा भगवान शिव के मस्तक पर विद्यमान रहता है। शिव-पार्वती का पूजन अर्चन के साथ ही रुद्राभिषेक भी होता रहता है।

मान्यता है कि बाबा आनन्देश्वर मंदिर में शिव दर्शन करने व सोमवार को व्रत रखने वाले भक्त-श्रद्धालुओं को अनन्त पुण्य की प्राप्ति होती है। भगवान शिव पद, प्रतिष्ठा एवं ऐश्वर्य प्रदान करते हैं। बाबा आनन्देश्वर के दर्शन-पूजन-अर्चन के लिए शहर के दर्शनार्थियों-भक्तों-श्रद्धालुओं के अलावा आसपास के इलाकों के अलावा दूर-दराज से भी आते हैं। गंगा के परमट घाट के शीर्ष पर स्थापित बाबा आनन्देश्वर का यह मंदिर अपनी विशिष्टताओं के लिए दूरदराज तक जाना जाता है। मान्यता है कि बाबा आनन्देश्वर के दर्शन मात्र से सारे क्लेश समाप्त हो जाते है। मंदिर में श्रद्धालुओं की अगाध श्रद्धा स्वत: दिखती है। गंगा स्नान के लिए परमट घाट पर सीढ़ियां हैं। हालांकि गंगधारा अब सीढ़ियों से काफी दूर है जिससे श्रद्धालुओं को गंगा स्नान में असुविधा का सामना करना पड़ता है। धर्माचार्यों की मानें तो बाबा आनन्देश्वर का यह मंदिर दो सौ वर्ष से भी अधिक पुराना है। नित्य करीब दस हजार श्रद्धालु शिवलिंग के दर्शन करते हैं। करीब एक एकड़ क्षेत्रफल में फैले इस मंदिर का संचालन पहले ट्रस्ट के हाथों में था लेकिन अब देखरेख जूना अखाड़ा के सानिध्य में होती है।




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