मां कुष्माण्डा देवी : जल करे रोगी को निरोग
रोगों से मुक्ति पाएं। मां कुण्माण्डा देवी के चरणों के जल को ग्रहण करें। निश्चय ही शरीर स्वस्थ्य एवं निरोगी होगा। 'मां कुष्माण्डा देवी" के भक्तों-श्रद्धालुओं के बीच तो यही मान्यता है। मां कुष्माण्डा देवी के चरणों का जल नेत्ररोगों में भी लाभकारी है। कानपुर शहर से करीब चालीस किलोमीटर दूर घाटमपुर में स्थित मां भगवती के इस स्वरुप के दर्शन करने बड़ी संख्या में भक्त उमड़ते हैं। करीब एक हजार वर्ष पुराने इस मंदिर की अपनी एक अलग गाथा है। मंदिर में मां भगवती के इस स्वरुप की लेटी प्रतिमा है। मां का यह स्वरुप एक पिण्डी के रुप में है। खासियत यह है कि प्रतिमा से जल का रिसाव अनवरत होता रहता है। मान्यता है कि इस जल को ग्रहण करने से सभी प्रकार के असाधारण-असाध्य एवं सामान्य रोग का निवारण हो जाता है। नेत्र रोग में इस जल को आंखों में लगाने से लाभ मिलता है।

रात्रिकाल में मां भगवती ने ग्वाला का स्वप्न दिया कि दुग्धदान का स्थान मां भगवती का स्थान है। ग्वाला ने यह स्वप्न राजा दर्शन को बताया। इसके बाद ग्वाला ने उस स्थान की खोदाई करायी तो मां भगवती के इस स्वरुप पिण्डी का प्राक्ट्य हुआ। ग्वाला कुड़हा व अन्य ग्रामीणों ने मां भगवती के इस स्वरुप पिण्डी को उसी स्थान पर स्थापित कर दिया। पिण्डी से जल रिसाव हो रहा था। यह देख ग्रामीण आश्चर्यचकित थे। जल को ग्रामीणों ने प्रसाद के तौर पर ग्रहण किया। बाद में राजा दर्शन ने इस स्थान पर मठिया-मंदिर का निर्माण कराया। ग्वाला का नाम कुड़हा था लिहाजा इलाके में कुड़हा देवी के नाम से भगवती के इस स्वरुप की ख्याति हुयी। अब मां भगवती के इस स्वरुप को कुड़हा देवी एवं कुष्माण्डा देवी के तौर पर ख्याति है। मां भगवती के इस स्वरुप को सती के चौथा अंश माना जाता है। शारदीय एवं चैत्र नवरात्र में मंदिर क्षेत्र में विशाल एवं भव्य मेला लगता है।

बहुत ही अच्छी जानकारी हासिल हुई। धन्यवाद्। जय माता दी।
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